वुज़ू का बयान
बिदअत का बयान
﷽
अनवारे शरीअत (पोस्ट न. 09)
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Anware Shariat अनवारे शरीअत |
सवाल : - बिदअत किसे कहते हैं । और उसकी कितनी किस्में हैं।
जवाब : - इसतिलाहे शरा ( इस्लामी बूली ) में बिदअत ऐसी चीज़ के ईजाद करने को कहते हैं जो हुज़ूर अलैहिस्सलाम के ज़ाहिरी ज़माना में न हो ख्वाह वह चीज़ दीनी हो या दुनियावी
📔( अशिअतुल्लमआत जिल्द अव्वल सफा 125 )
और बिदअत की तीन किस्में हैं ।
(1)बिदअते हसना
(2)बिदअते सय्येआ
(3)बिदअते मुबाहा
बिदअते हसना वह बिदअत है जो कुरान व हदीस के वसूल व कवाइद के मुताबिक़ हो और उन्हीं पर कियास किया गया हो उस की दो किस्में हैं । अव्वल बिदअतेवाजिबा जैसे कुरान व हदीस समझने के लिए इल्मे नहू का सीखना और गुमराह फ़िरके मसलन खारजी , राफ़जी , कादियानी और वहाबी वगैरा पर रद के लिए दलाइल कायम करना ।
दोम बिदअते मुसतहब्बा जैसे मदरसों की तामीर और हर वह नेक काम जिसका रवाज इबतिदाए ज़माना में नहीं था जैसे अज़ान के बाद सलात पुकारना , दुरै मुखतार बाबुल अज़ान में हैं कि अज़ान के बाद अस्सलातु वस्सल्लमु अलैक या रसूलल्लाह पुकारना , माहे रबीउल आख़र सन् 781 हिजरी में जारी हुआ और यह बिदअते हसना है ।
सवाल : - बिदअते सय्येआ किसे कहते हैं । और उसकी कितनी किस्में हैं ?
जवाब : - बिदअते सय्येआ वह बिदअत है जो कुरान व हदीस के उसूल व कवाइद के मुखालिफ़ हो।
📔( अशिअतुल्लमआत जिल्द अव्वल सफ़ा 125 )
उसकी दो किस्में हैं ।
अव्वल★ बिदअते मुहर्रमा जैसे हिन्दुस्तान की मुख्वजा ताजियादारी 📓( फतावा अजीजिया रिसाला ताज़ियादारी आला हज़रत ) और जैसे अहलेसुन्नत व जमाअत के खिलाफ़ नए अक़ीदा वालों के मजाहिब 📔( अशिअतुल्लमआत जिल्द अव्वल सफा 125 )
दोम ★बिदअते मकरुहा जैसे जुमा व ईंदैन का खुतबा गैरे अरबी में पढ़ना ।
सवाल : - बिदअते मुबाहा किसे कहते हैं ।
जवाब : - जो चीज़ हुज़ूर अलैहिस्सलाम के ज़ाहिरी ज़माना में न हो और जिसके करने न करने पर सवाब व अज़ाब न हो उसे बिदअते मुबाहा कहते हैं। 📔( अशिअ तुल्लमआत जिल्द अव्वल सफा 125 } जैसे खाने पीने में कुशादगी इख़तियार करना और रेल गाड़ी वगैरा में सफर करना ।
सवाल : - हदीस शरीफ़ में है कि हर बिदअत गुमराही है तो इससे कौन सी बिदअत मुराद है ।
जवाब : - इस हदीस शरीफ़ से सिर्फ बिदअते सय्येआ मुराद है। 📚(देखिए मिरकात शरह मिशकात जिल्द अव्वल सफा 179 और अशिअतुल्लमलात जिल्द अव्वल सफा 125 ) इसलिए कि अगर बिदअत की तमाम किस्में मुराद ली जाएं जैसे कि ज़ाहिरे हदीस से मफहूम होता है तो फिकह , इल्मे कलाम और सर्फ व नहू व वगैरा की तदवीन और उनका पढ़ना पढ़ाना सब जलालत व गुमराही हो जाएगा ।
सवाल : - क्या बिदअत का हसना और सय्येआ होना हदीस शरीफ से भी साबित है ?
जवाब : - हां बिदअत का हसना और सय्येआ होना हदीस से भी साबित है तिरमिज़ी शरीफ़ में है कि हज़रते उमर फारूके आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु ने तरावीह की बाकायदा जमाअत काइम करने के बाद फ़रमाया कि यह बहुत अच्छी बिदअत है।
📗( मिशकात सफा 115 )
और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रते जरीर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फ़रमाया कि जो इस्लाम में किसी अच्छे तरीका को राइज करेगा तो उसको अपने राइज करने का भी सवाब मिलेगा और उन लोगों के अमल करने का भी सवाब मिलेगा जो उसके बाद उस तरीका पर अमल करते रहेंगे और अमल करने वालों के सवाब में कोई कमी भी न होगी और जो शख्स मज़हबे इस्लाम में किसी बुरे तरीका को राइज करेगा तो उस शख्स पर उस के राइज करने का भी गुनाह होगा और उन लोगों के अमल करने का भी गुनाह होगा जो उसके बाद उस तरीका पर अमल करते रहेंगे और अमल करने वालों के गुनाह में कोई कमी भी न होगी।
📗( मिशकात सफा 33 )
सवाल : - क्या मीलाद शरीफ़ की महफ़िल मुनअक़िद करना बिदअते सय्येआ है ?
जवाब : - मीलाद शरीफ़ की महफ़िल मुनअक़िद करना उस में हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की पैदाइश के हालात और दीगर फ़जाइल व मनाकिब बयान करना बरकत का बाइस है । उसे बिदअते सय्येआ कहना गुमराही व बदमज़हबी है ।
सवाल : - क्या हुज़ूर अलैहिस्सलाम के ज़माने में मय्यत का तीजा होता था ?
जवाब : - मय्यत का तीजा और इसी तरह दसवां , बीसवां और चालीसवां वगैरह हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम के ज़ाहिरी ज़माना में नहीं होता था बल्कि यह सब बाद की ईजाद हैं और बिदअते हसना हैं इसलिए कि इनमें मय्यत के ईसाले सवाब के लिए कुरान ख्वानी होती है । सदक़ा खैरात किया जाता है और गुरबा व मसाकीन को खाना खिलाया जाता है और यह सब सवाब के काम हैं । हां इस मौक़ा पर दोस्त व अहबाब और अज़ीज़ व अकारीब की दावत करना ज़रूर बिदअते सय्येआ है।
📚( शामी जिल्द अव्वल सफा स. 629 फ़तहुल क़दीर जिल्द दोम सफा 102 )
📗अनवारे शरीअत, सफा 21/22/23/24
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शिर्क का बयान
﷽
अनवारे शरीअत (पोस्ट न. 08)
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Anware Shariat अनवारे शरीअत |
सवाल : - शिर्क किसे कहते हैं ?
जवाब : - खुदाये तआला की ज़ात व सिफ़ात में किसी को शरीक ठहराना शिर्क है । ज़ात में शरीक ठहराने का मतलब यह है कि दो या दो से ज़ियादा खुदा माने जैसे ईसाई कि तीन खुदा मान कर मुश्रिक हुए और जैसे हिन्दू कि कई खुदा मानने के सबब मुश्रिक हैं । और सिफ़ात में शरीक ठहराने का मतलब यह है कि खुदाये तआला की सिफ़त की तरह किसी दूसरे के लिए कोई सिफ़त साबित करे मसलन सुनना और देखना वगैरा जैसा कि खुदाये तआला के लिए बगैर किसी के दिए ज़ाती तौर पर साबित है उसी तरह किसी दूसरे के लिए सुनना और देखना वगैरा जाती तौर पर माने कि बगैर खुदा के दिए उसे यह सिफ़तें खुद हासिल हैं तो शिर्क है और अगर किसी दूसरे के लिए अताई तौर पर माने कि खुदाये तआला ने उसे यह सिफ़तें अता की हैं तो शिर्क नहीं जैसा कि अल्लाह तआला ने खुद इन्साफ़ के बारे में पारा 29 रुकू 19 में फ़रमाया जिसका तर्जमा यह है कि हमने इन्सान को सुनने वाला , देखने वाला बनाया ।
सवाल : - कुफ्र किसे कहते हैं ?
जवाब : - ज़रूरियाते दीन में से किसी एक बात का इन्कार करना कुफ़्र है ज़रूरियाते दीन बहुत हैं उनमें से कुछ यह है खुदायेतआला को एक और वाजिबुलवजूद मानना , उसकी ज़ात व सिफ़ात में किसी को शरीक न समझना , जुल्म और झूट वगैरा तमाम उयूब से उसको पाक मानना , उसके मलाइका और उसकी तमाम किताबों को मानना , कुरान मजीद की हर आयत को हक समझना , हुज़ूर सैय्यिदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और तमाम अंबियायेकिराम की नबूवत को तस्लीम करना उन सबको अज़मत वाला जानना , उन्हें ज़लील और छोटा न समझना उनकी हर बात जो क़तई और यक़ीनी तौर पर साबित हो उसे हक़ जानना हुज़ूर अलैहिस्सलाम को खातमुन्नबीयीन मानना उनके बाद किसी नबी के पैदा होने को जाइज़ न समझना , कियामत हिसाब व किताब और जन्नत व दोज़ख़ को हक़ मानना , नमाज़ व रोज़ा और हज व ज़कात की फ़र्ज़ियत को तस्लीम करना , ना , चोरी और शराब नोशी वगैरा हराम क़तई की हुरमत का इतिक़ाद करना और काफ़िर को काफ़िर जानना वगैरा ।
सवाल : - किसी से शिर्क या कुफ्र हो जाए तो क्या करे ?
जवाब : - तौबा और तजदीदे ईमान करे बीवी वाला हो तो तजदीदे निकाह करे और मुरीद हो तो तजदीदे बैअत भी करे ।
सवाल : - शिर्क और कुफ्र के अलावा कोई दूसरा गुनाह हो जाए तो मुआफ़ी की क्या सूरत है ?
जवाब : - तौबा करे खुदाये तआला की बारगाह में रोये गिड़गिड़ाये अपनी गलती पर नादिम व पशीमा हो और दिल में पक्का अहद करे कि अब कभी ऐसी गलती न करूंगा सिर्फ जुबान से तौबा तौबा कह लेना तौबा नहीं है ।
सवाल : - क्या हर किस्म का गुनाह तौबा से मुआफ़ हो सकता है ?
जवाब : - जो गुनाह किसी बन्दा की हक़तलफ़ी से हो मसलन किसी का माल गसब कर लिया , किसी पर तहमत लगाई या जुल्म किया तो इन गुनाहों की मुआफ़ी के लिए ज़रूरी है कि पहले उस बन्दे का हक़ वापस किया जाए या उससे मुआफ़ी मांगी जाए फिर खुदाये तआला से तौबा करे तो मुआफ हो सकता है । और जिस गुनाह का तअल्लुक़ किसी बन्दा की हक़तलफ़ी से नहीं है बल्कि सिर्फ खुदाये तआला से है उसकी दो किस्में हैं एक वह जो सिर्फ तौबा से मुआफ़ हो सकता है जैसे शराब नोशी का गुनाह और दूसरे वह जो सिर्फ तौबा से मुआफ नहीं हो सकता है जैसे नमाजों के न पढ़ने का गुनाह इसके लिए ज़रूरी है कि वक़्त पर नमाज़ों के अदा न करने का जो गुनाह हुआ उससे तौबा करे और नमाजों की कज़ा पढ़े अगर आखिरे उम्र में कुछ कज़ा रह जाए तो उनके फ़िदयह की वसीयत कर जाए ।
📗अनवारे शरीअत, सफा 18/19)20/21
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